सच्चा प्यार और भक्ति क्या है?
1-परमात्मा से प्यार
सतगुरु जो भी हुक्म देते हैं, उसका अटूट विश्वास के साथ पालन करना ही
सतगुरु से सच्चा प्यार करना है। सतगुरु हुक्म देते हैं कि शराब-कबाब से दूर रहो, एक सच्चा और नेक जीवन बिताओ, किसी की सम्पत्ति
न चुराओ, काम-क्रोध को त्यागो और विषय-विकारो से मन को हटाकर
अन्दर रूहानी मण्डलों पर चढ़ो। यही आपकी जिंदगी का असली उद्देश्य है। गुरु से प्यार
करना परमात्मा से प्यार करना है। सतगुरु से प्यार को मुकम्मिल करो। सतगुरु
परमात्मा के प्यार से परिपूर्ण है। इसलिए जब हम सतगुरु से प्यार करेंगे तो
परमात्मा का प्यार हमारे अन्दर अपने आप ही आ जायेगा। परमात्मा में लीन होने का एक
यही रास्ता है। सतगुरु का प्रेम परमात्मा की प्राप्ति की पहली पौड़ी है।
2-रास्ता अन्दर है
ग्रन्थों-पोथियों के पाठ, तीर्थ-यात्रा या गंगा स्नान से आज तक किसी
को परमात्मा नहीं मिला। रावण केवल चारों वेदों का विद्वान ही नहीं था बल्कि उनका
टीकाकार पण्डित भी था। वेदों पर की गयी उसकी टीका सर्वश्रेष्ट टीका मानी जाती थी।
किन्तु उसका चरित्र कैसा था? आप सब जानते हैं कि भारत के हर
गाँव, हर शहर में हर वर्ष उसका पुतला क्यों जलाया जाता है? परमात्मा ग्रन्थों-पोथियों में नहीं है। वह तो आपके अन्दर है। ग्रन्थ तो
केवल उसकी महिमा करते हैं। केवल एक देह-स्वरूप गुरु ही उसे प्राप्त करने का रास्ता
बता सकता है। बिना गुरु की शरण में गये आज तक परमात्मा ना किसी को मिला है और न ही मिल सकता है। गहराई से पता लगा कर देख लीजिये, आपको खुद पता चल जायेगा। इसलिए बिना समय गवायें किसी कामिल मुर्शिद या पूर्ण गुरु को ढूंढो और उससे अन्दर जाने का
भेद प्राप्त करो। जब आप आंखों के पीछे तीसरे तिल पर पहुँचेंगे तो वहाँ सतगुरु आपके
इंतिज़ार में खड़ा मिलेगा। उसके बाद वह आपका साथ कभी नहीं छोड़ेगा।
3-मजहबी झगड़े क्यो?
ये मजहबी झगड़े, ये धार्मिक विवाद क्यो हैं? विचार न करने के कारण, अज्ञानता के कारण। जब कोई
सन्त या पैगम्बर आते हैं तो वे सीधी-सादी भाषा में सनातन-सत्य कि ओर हमारा ध्यान
खिचते हैं। वे कोई नया मजहब चलाने नहीं आते। लेकिन उनके जाने के बाद लोग अपने आपको
मजहबो व जातियों में बाँट लेते हैं। पैगम्बर मुहमद साहिब एक थे और कुरान शरीफ भी एक
ही है। पर आज उनके मनाने वालों में 72 फिरके बने हुये हैं। गुरु नानक का विचार कभी
धर्म बनाने का नहीं था, किन्तु आज सिक्खों के 22 पंथ चल रहे
हैं। सन्त कहते हैं, इन बाहर की निरर्थक बातों की चिंता न
करो। सच्चा नाम ही एक ऐसी वस्तु है जिसकी चिन्ता करनी चाहिए। वह कहीं बाहर नहीं, तुम्हारे अन्दर ही मौजूद है। उस नाम या शब्द को पकड़कर उसके द्वारा चुपचाप
अपने असली घर पहुँच जाओ। पर उसके लिए तुम्हें किसी कामिल-मुर्शिद या पूर्ण गुरु की
तलास करनी पड़ेगी।
भई परापत मानुष देहरिया, गोविंद मिलन की यह तेरी बरिया।
अवर काज तेरे कीतै न काम, मिल साध संगत भज केवल नाम॥
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