गुरु हमारे सच्चे साथी

 

1-गुरु और परमात्मा

केवल दो ही चीजें हमारी पूजा के योग्य हैं- एक तो गुरु और दूसरा परमात्मा। शायद आप सवाल करें कि मैंने गुरु को पहला दर्जा क्यो दिया, परमात्मा को क्यों नहीं? यह सवाल स्वाभाविक है। जितने भी संतों, महात्माओं, पैगम्बरों ने परमार्थ की खोज की है और जो अन्दर गये हैं उन सबका यही कथन है कि परमात्मा हमारे अन्दर है, लेकिन बिना गुरु की कृपा से उसे को कोई पा नहीं सकता। वह हमेशा हमारे साथ रहता है, हमारे अन्दर रहता है। पर अपने अन्दर उसके होते हुये भी आप जानते ही हैं हम सबकी क्या दुर्दशा हो रही है। जब गुरु मिले तो उन्होने युक्ति प्रदान की और हमें परमात्मा के प्रत्यक्ष दर्शन करा दिये। अतः बड़ाई किसकी हुई? गुरु की। इसी बात को कबीर साहिब अपने ढंग से कहते हैं:

गुरु गोविंद दोऊ खड़े का के लागौ पाय।

बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो दिखाय॥




असल में इस सिद्धान्त की पुष्टि में किसी जबरजस्त तर्क की जरूरत नहीं। परमात्मा के हमारे अन्दर होते हुये भी हम नरको और स्वर्गों में धकेले जा रहे थे और कीड़े- मकौड़े, साँप, खरगोश, पशु-पक्षी, घास-फूस  आदि के रूप में जन्म और पुनर्जन्म पा रहे थे। हमारी मदद को कोई न आया। लेकिन जब हमें सतगुर मिले तो उन्होने हमें इन यतनाओं से बचा लिया और परमात्मा के महल में ले गये। 

2-गुरु हमारी संभाल करते हैं

मौत के समय हमारा कौन साथ देता है? उस समय हमें रिश्तेदार, मित्र, माँ-बाप, भाई-बहन, पड़ोसी और पुरोहित सब छोड़ देते हैं। यहाँ तक कि यह शरीर भी, जिसके पालन-पोषण के लिए हम तरह-तरह के पाप करते रहते है, धोखा दे जाता है। अगर मौत के समय हमारी कोई मदद करता है और धर्मराज के दरबार में हमारे साथ जाता है तो वह केवल गुरु है। मौत के बाद और कोई मदद नहीं कर सकता। अगर ऊँचे भाग्य से मनुष्य को सतगुरु मिल जाये और वह उनसे नामदान लेकर प्यार और भक्ति के साथ कमाई करे तो निश्चित है कि उसकी मौत के समय सतगुर प्रकट होंगे और उसको अपने साथ ले जायेंगे। अगर मौत के अपार कष्ट के समय गुरु मदद नहीं करता तो ऐसे गुरु का क्या फायदा? तकलीफ के उस नाजुक समय में सहारे और मदद के लिए ही गुरु की शरण ली जाती है। अगर गुरु से यह मदद नहीं मिलती तो ऐसे गुरु को हमारा दूर से ही सलाम है। इसलिए गुरु को चुनने में बड़ी सावधानी से काम लेना चाहिए, हमें पूर्ण गुरु को अपनाना चाहिए। मौत के समय प्राण निकलने में बड़ा कष्ट होता है। जिसे सतगुरु नहीं मिले, उसकी मौत के समय यमदूत आते है। लेकिन सत्संगी की मौत के वक्त सतगुरु आ जाते हैं और उस समय उसे इतनी खुशी होती है जितनी अपनी शादी की भी नहीं होती। 

 

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