परमात्मा का अस्तित्व
1-क्या परमात्मा है?
पेड़ का एक-एक पत्ता तक
परमात्मा के अस्तित्व की ओर इसारा करता है। कुदरत में आपको कितनी खूबसूरती, कारीगरी, कला और
चतुराई देखने को मिलती है। संसार में हर चीज कितनी व्यवस्था,
नियम और कुशलता के साथ जमाई गयी है। अगर कोई व्यवस्थापक नहीं है, तो यह सब व्यवस्था, सजावट और पूरी सावधानी से किया
गया नियंत्रण, यह सारी योजना कहाँ से आती है? जर्रा-जर्रा अपने सिरजनहार की खूबसूरती प्रकट कर रहा है। लेकिन, जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग में हमारी बुद्धि एक बहुत सीमित और तुच्छ साथी है। इस
मार्ग में हमें अपनी आन्तरिक दृष्टि का सहारा लेना पड़ता है। रूहानी अभ्यास के
द्वारा हमें अपनी अन्दर की आँख को खोलना पड़ता है। जब परमात्मा अन्तर में दिखाई
देने लगता है, तब बाहर कण-कण और पत्ते-पत्ते में नजर आने
लगता है। सन्त उसे हर वक्त हर जगह देखते हैं।
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं
कि दुनिया डाक्टरों, वौज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा उनकी खोज के नतीजों पर तो बिना किसी हिचकिचाहट के फौरन
विश्वास कर लेती है, पर संतो पर विश्वास नहीं करती। जो कि
अपने निज अनुभव के आधार पर कह रहे हैं कि हमने परमात्मा को अपने अन्तर में देखा
है।
2- परमात्मा आपके अन्दर है
सन्त कहते हैं कि मालिक
तुम्हारे अन्दर है। वह जब भी मिलेगा, तुम्हें अपने अन्दर से ही मिलेगा। बाहर न कभी किसी को मिला है और न ही
मिलेगा। परमात्मा केवल मनुष्य जन्म में ही मिल सकता है। जीते-जी अन्दर जाकर उसे
देखो। मरने के बाद की मुक्ति के वायदों पर भरोसा न करो। जीते-जी उसे पा लो। जो
इन्सान जीते-जी अनपढ़ है, वह मरने के बाद बी॰ ए॰ , एम॰ ए॰ तो नहीं हो सकता। जो जिंदगी भर चोर रहा है,
वह मर कर महात्मा बनने की आशा कैसे कर सकता है?
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