गुरु परमात्मा में अंतर निरंतर नहीं

 1-गुरु परमात्मा एकरूप

गुरु और परमात्मा में जरा भी अंतर नहीं होता है। मैं पूर्ण गुरु की बात कर रहा हूँ। जैसे समुद्र में से कोई लहर दो-चार मिनट के लिए समुद्र से बाहर आती है। वह समुद्र का ही हिस्सा होती है। जब हम कोई चीज उस लहर के हवाले कर देते हैं, तो वह लहर उसे लेकर समुद्र की तह में बैठ जाती है। ठीक उसी प्रकार पूर्ण गुरु(सतगुरु) भी होते है। वो परमात्मा रूपी समुद्र से निकलकर आते हैं। जब हम अपने आपको उनके हवाले कर देते हैं, तो वह हमें एक दिन अपने में मिला लेते हैं। अर्थात परमात्मा से मिला देते है। वे खुद कुल मालिक होते हैं। खुद खुदा होते हैं। खुद परमात्मा होते है।

गुरु कभी नहीं कहता कि वह गुरु है। वह तो कहता है कि आप मुझे भाई, मित्र, शिक्षक, पुत्र या सेवक कुछ भी समझ लें। पर मेरा कहना मानें और अंतर में प्रवेश करें। जब आप इसमे कामयाब हो जायेंगे तो आप खुद देख लेंगे कि गुरु का असली रूप और उसका सामर्थ्य क्या है। तब आप उन्हें जो इच्छा हो कह कर पुकार सकते है। किसी सन्त ने आज तक दावा नहीं किया कि वह गुरु है। वे हमेशा अपने आपको सेवक और दास कहते है। गुरु नानक साहिब और कबीर साहिब ने हमेशा अपने आपको दास ही कहा।



एक बार कबीर साहिब अपने एक शिष्य को अंदर ले गए। वहाँ उसने देखा कि परमात्मा की जगह खुद कबीर साहिब विराजमान हैं। यह देखकर उसने पूछा कि आप मुझे नीचे मृत्युलोक में ही क्यों नहीं बताये कि आप ही परमात्मा हैं। तब मैं शायद आपकी और अच्छी सेवा करता। तब कबीर साहिब ने कहा कि तुमको वहाँ विश्वास नहीं होता।

2-गुरु दाता होता है, मँगता नहीं

गुरु कभी किसी से एक पाई भी नहीं लेता, अगर लेता है तो वह गुरु नहीं, भिखारी होता है। गुरु दाता होता है, मँगता नहीं। वह देने को आता है, लेने को नहीं। सन्त हमेशा अपनी मेहनत की, ईमानदारी की कमाई खाते हैं। वे मजदूरी करेंगे, लेकिन दूसरों के दान का आसरा न लेंगे और न दूसरों के सिर पर बोझ बनकर रहेंगे। आप उनके जीवन का इतिहास पढ़कर देख लीजिये।

कबीर के शिष्यों में राजा, महाराजा और बादशाह भी हुये थे। लेकिन जिंदगी भर वे एक गरीब जुलाहे का काम करते रहे। उनके घर में केवल दो खाट थी। वे उन्हें अपने घर आये साधुओं को दे दिया करते थे और खुद परिवार सहित जमीन पर ही रात काट लिया करते थे। घर में खाने की हमेशा कमी रहती थी। जो भी होता था उसे वे साधुओं को खिला देते थे और खुद मुट्ठी-भर चनों पर ही दिन गुजार लिया करते थे। कबीर साहिब के जीवन की यह तस्वीर हमें उनकी पत्नी माई लोई के एक गीत में मिलती है।


रविदास बड़े ऊँचे सन्त थे। वे रानी मीराबाई और राजा पीपा के गुरु थे। लेकिन जिंदगी-भर मोची का काम करते रहे और लोगों की जूतियाँ गाँठ-गाँठ कर रोजी कमाते रहे। सन्त नामदेव ने कपड़ों की छपाई करके अपना गुजारा किया। गुरु नानक ने खेती की।  





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