बाबा जग फांसा महाजाल
1-कर्म कैसे बनते हैं?
जब हम इस सृष्टि में आये, तब हमारे कोई कर्म नहीं थे। जब आप शतरंज
खेलते हैं तो पहली चाल आपके हाथ में होती है। लेकिन फिर बाद की चालें उस पहली चाल
पर निर्भर करती हैं। फिर आपके पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं रहता। इसी तरह शुरू
में जब हम पैदा हुये और दुनिया में आये, तब हमारा कोई कर्म
नहीं था। परमात्मा की इच्छा थी कि हम इस सृष्टि का हिस्सा बनें। लेकिन इस सृष्टि
में आने के बाद हम कर्म किये बिना नहीं रह सकते। यहाँ हम अच्छे कर्म भी करते हैं
और बुरे भी। क्योंकि हमें यह मन दिया गया है, जो हमेशा
इंद्रियों के पीछे दौड़ता रहता है। हम कोई न कोई कर्म करने के लिये मजबूर हैं।
2-अच्छे और बुरे कर्म
जब हम अच्छे कर्म करते हैं।
कोई स्कूल-कॉलेज बनवा देते हैं। कोई अनाथ आश्रम बनवा देते है। दान-पुण्य करते हैं।अच्छे
चरित्र व विचार से असहायों की मदद करते हैं। तीर्थ-व्रत-स्नान करते हैं।
देवी-देवताओं की पुजा-पाठ करते हैं। या अन्य प्रकार के अच्छे कर्म करते है। इन
अच्छे कर्मो से हमारी आगे की स्थित सुधरती है। इन अच्छे कर्मो के प्रताप से हम आगे
किसी जन्म में राजा-महाराजा बनकर आ जाते हैं। सेठ-साहूकार बन जाते हैं। या ज्यादा
से ज्यादा देवताओं की योनियाँ पाकर स्वर्गों तथा बैकुंठों में चले जाते हैं।
परन्तु इन अच्छे कर्मों के
द्वारा हम 84 के बन्धन से नहीं निकल सकते। हम चाहे जीतने भी अच्छे कर्म कर ले
परन्तु इससे हमारी मुक्ति नहीं हो सकती। अपने अच्छे कर्मों के फल को भोगने के बाद
हमें पुनः इस संसार में आना पड़ता है।
अगर हम बुरे कर्म करते हैं तो
नर्क और 84 हमारे लिये तैयार ही रहती है। और बिना कर्म किये हम रह भी नहीं सकते।
इसीलिए गुरू नानक जी कहते हैं----
बाबा जग फांसा महाजाल
3-मुक्ति कैसे हो सकती है
तो क्या हम इस 84 लाख योनियों के महाजाल में ही फसे रहेंगे? क्या हमारी मुक्ति नहीं हो सकती? आप खुद ही उत्तर
देते है। हमारी मुक्ति हो सकती है। यदि हमें कोई पूर्ण सन्त सतगुरु मिल जायें। जो
कुल मालिक से मिलकर उनका रूप हो चुके है। जिनमें और कुल मालिक में जरा भी अन्तर न
हो। अगर ऐसा कोई महात्मा या साधू या दरवेश या कामिल मुर्शिद मिल जाये और वह हमें
अपनी शरण में ले ले। तो हम आसानी से इस महाजाल से हमेशा के लिये निकल सकते हैं।
4-यह सब केवल मनुष्य जन्म में ही सम्भव है
84 लाख योनियों में केवल मनुष्य जन्म ही कर्म
योनि है। बाकी सारी भोग योनियाँ हैं। देवी-देवता की योनि भी भोग योनि है। मुक्ति
केवल मनुष्य जन्म में ही सम्भव है। मनुष्य जन्म ठीक उसी प्रकार है, जैसे छत की सीढ़ी का आखिरी पावदान हो। अगर
हम कोशिश करेंगें तो छत पर चले जायेंगे। यानी हमारी मुक्ति हो जायेगी। यदि आखिरी
पावदान से पैर फिसला तो न जाने कहाँ किस योनि में जाकर गिरेंगे।
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