मोह माया
1-एक कहानी से इसे समझते हैं
फारस के रुस्तम नामक एक बड़े
बहादुर योद्धा और उसके पुत्र सोहराब की कहानी आप सबने सुनी होगी। वे पिता-पुत्र
थे। लेकिन उन्होने एक-दूसरे को देखा तक नहीं था। लड़ाई के मैदान में ही वे एक-दूसरे
के सामने आए। दोनों अपनी-अपनी फौजों की बागडोर संभाले हुये थे। रुस्तम ने सोहराब
के जन्म के कुछ दिन पहले ही घर छोड़ दिया था। वह अपनी स्त्री के पास एक ताबीज छोड़
गया और कह गया की इसे बच्चे की दाहिनी भुजा पर बाँध देना। जिससे जब कभी हम मिले तो
मैं अपने बेटे को पहचान जाऊ। सोहराब छोटी उम्र में ही यूनान की फौज में भर्ती हो
गया। और अपनी योग्यता तथा बहादुरी के कारण जल्द ही सेनापति बन गया। रुस्तम को फारस के राजा
के हुक्म के मुताबित संसार को फतह करने के लिए रवाना होना पड़ा।
जब युद्ध में पिता-पुत्र का
मुक़ाबला हुआ तो वे अपने इस रिश्ते को नहीं जानते थे। उनकी घमासान लड़ाई लगातार
पंद्रह दिन तक चलती रही। चुकी रुस्तम उम्र में बड़ा था। इसलिए धीरे-धीरे थकान महसूस
करने लगा। फिर उसने एक चाल चली। जिससे सोहराब लड़खड़ाकर गिर गया। रुस्तम ने इस मौके
का फायदा उठाया और फौरन सोहराब के सीने में कटार भोंक दी। सोहराब चिल्लाया, अरे कमबख्त ! याद रखना, मेरा पिता रुस्तम बदला लेना खूब जनता है। वह जरूर तुझे इस चालबाजी की सजा
देगा।
रुस्तम ने सोहराब के बाँह पर
अपना दिया हुआ तावीज बंधा हुआ देखा तो थर्रा गया। इस अपार दुख से उसके चेहरे का
खून सुख गया और उसका शरीर सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा। बेहाल होकर उसने सोहराब
को अपनी बांहों में भर लिया और उसका माथा चूमने लगा। असीम पीड़ा से वह चिल्ला उठा, या खुदा !! मैंने यह क्या कर डाला? उसका विलाप चारो ओर गूंज उठा। यह देखकर दोनों तरफ की सेनाये भी रोने लगी।
रुस्तम के हाथ से सोहराब को लगी चोट प्राणघातक थी। इसलिए वह दौड़कर अपने राजा के पास गया।
राजा के पास घाव की
अचूक दवा थी। पर राजा ने सोहराब की वीरता और बहादुरी के किस्से सुन रखे थे। राजा
ने अपने राज्य को खतरा समझकर दवा देने से इंकार कर दिया। रुस्तम ने बड़ी मिन्नते
की। पर राजा ने उसकी एक न सुनी। सोहराब अपने पिता के लौटने से पहले ही मर चुका था।
अपने बेटे को मरा हुआ देखकर रुस्तम बेहोस हो गया और उसके बाद फिर वह पहले जैसा
रुस्तम न रहा।
2-मन की चाल
यह तो बड़ी करुण कहानी है। इस
कहानी में आपने देखा कि दो व्यक्ति एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू थे। एक ने दूसरे
को आपना दुश्मन समझा हुआ था। बेरहमी से सोहराब को मार डालने के बाद रुस्तम रोने और
विलाप करने लगता है। क्योकि वह अब उसे अपना बेटा मानता है। आदमी भी दोनों वही हैं, और हालत भी वही। पर इनमे अब केवल “मैं” और
“मेरा” जाग उठा है। यह मेरा या अपनापन जागने से पहले उस अनजान के लिये रुस्तम के
हृदय में न दया थी, न प्यार था, न मोह
था। वह तो उस अनजान को मार डालना चाहता था। इसका यह मतलब हुआ कि न हमारा कोई दोस्त
है, न दुश्मन। यह हमारा मन ही है जो लोगों को दोस्त और
दुश्मन के रूप में देखने लगता है।
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