कर्म
कर्म
हमारे (एक आत्मा के ) तीन तरह के कर्म होते है।
1-क्रियमान
2-संचित
3-प्रारब्ध
जो कर्म हम अभी इस जन्म में कर रहे हैं , ओ क्रियमान कर्म कहलाते हैं ।
हमारे द्वारा पिछले विभिन्न जन्मों में किए कर्मो का एक ढेर सा बन गया है ,जो संचित कर्म कहलाते हैं।
इन संचित कर्मो के ढेर में से कुछ कर्मो को लेकर हमे यह जन्म मिला है । जिनका हिसाब हमें इस जन्म में देना है । ओ टल नहीं सकता । ये कर्म हमने ही अपने किसी पिछले जन्मो में किए हैं । हमारे इस जन्म में जो सुख और दुख आते हैं , उनका कारण हमारे द्वारा किसी पूर्व जन्म मे किए गए प्रारब्ध कर्म ही हैं ।
आपने कई बार देखा होगा कि कुछ लोग बहुत अच्छे कर्म करते हैं , फिर भी उन्हे दुखो का सामना करना पड़ता है । इसका एकमात्र कारण प्रारब्ध कर्म ही हैं। ऐसे लोग अपने पिछले किसी जन्म में गलत कर्म किए हैं जिनका फल अब इन्हें भोगना पड़ रहा है। कुल 84 लाख योनियों के चक्कर लगाने के पश्चात एक आत्मा को मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है , ताकी वह (आत्मा) इस जन्म मरण के चक्कर से खुद को हमेसा के लिए आजाद (मोक्ष प्राप्त )कर सके । एक आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति केवल मनुष्य जन्म में ही संभव है । और किसी जन्म (कुत्ता , हाथी , साप, पेड़, भूत, प्रेत, देवी, देवता, गंधर्व ........) में नहीं।
इसीलिए देवी -देवता भी मनुष्य जन्म की आकांक्षा करते हैं। एक आत्मा जब बहुत ही शुभ कर्म करती है तो स्वर्ग में देवी-देवता का पद प्राप्त करती है । परंतु जब उसके शुभ कर्मो का फल समाप्त हो जाता है तो वह पुनः जन्म मरण के चक्कर में चली जाती है। मोक्ष केवल मालिक में अभेद की शरण में जाने से हो सकता है, और ये सब केवल मनुष्य जन्म में ही संभव है।
इस दुनिया में कोई अपना नहीं है । हमारे द्वारा पिछले जन्मो में किए कर्मो के कारण ही कोई माता , कोई पिता,कोई भाई ,कोई बहन, कोई पत्नी, कोई बेटा,कोई पति इत्यादि बने हुये हैं। इनसे हमारा पिछले किसी जन्म में किए कर्मो के कारण संबंध है । जब कर्मो का हिसाब पूरा हो जाता है , तो ये हमें छोड़कर चले जाते हैं या हम इन्हें छोड़कर चले जाते हैं। इसे ऐसे समझें जैसे एक नाटक का मंच है । वहाँ कोई राजा है , कोई रानी है , कोई........ । पर नाटक के समाप्त होने पर ना कोई राजा होता है , ना कोई रानी होती है , ना कोई ......... । इसी तरह यह दुनिया भी एक बहुत बड़ी नाटक की मंच है , जहां हम सभी अपना-अपना पाठ अदा कर रहे हैं। और जब जिसका पाठ समाप्त हो जाता है ,वह यहा से चला जाता है।
मैंने बताया कि इस दुनिया में कोई अपना नहीं है । इसका मतलब हमें दुनिया छोड़कर भागना नहीं है ।हमें दुनिया में रहना है । शूरमा बनकर रहना है । बहादुर बनकर रहना है। मगर दुनिया में रहते हुये दुनिया की मैल में नहीं लीबड़ना है।
मतलब कि वह मालिक हमें हमारे कर्मो के अनुसार चाहे जहां जिस परिस्थित में रखे ,हमें खुश रहना चाहिए । हमें दुनिया मे रहते हुये यह सोचकर कर्म करना चाहिए कि वह मालिक हमसे कहीं नाराज न हो जाए । हमें अपने मन में ये अच्छी तरह बैठा लेना चाहिए कि हमारी हर एक सोच द्वारा जो कर्म हो रहे हैं ,उनका हिसाब हमसे एकदिन लिया जाएगा । ओ मालिक हमारे सारे कर्मो को देख रहा है । उसे किसी सबूत,गवाह, जज की आवश्यकता नहीं है । वह मालिक आप ही सबूत है, आप ही गवाह है और आप ही जज है । हम दुनिया को धोखा दे सकते हैं मगर उस मालिक (भगवान ) को नहीं ।
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